आंगिरस

Disamb2.jpg आंगिरस एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- आंगिरस (बहुविकल्पी)

आंगिरस महर्षि अंगिरा के पुत्र थे। 'पद्मपुराण' के सन्दर्भ में अंगिरा ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। आंगिरस बृहस्पति अंगिरा के पुत्र एवं ब्रह्मा के पौत्र हैं। फलत: इनकी देवों में गणना होती है। इस प्रकार देवगुरु बृहस्पति एवं आंगिरस बृहस्पति में कोई भेद नहीं माना जा सकता। पुराणों में संदीपनी तथा आंगिरस को श्रीकृष्ण का गुरु बताया गया है।

  • श्रीकृष्ण ऐतिहासिक पुरुष थे, इसका स्पष्ट प्रमाण 'छान्दोग्य उपनिषद' के एक उल्लेख में मिलता है। वहाँ कहा गया है कि- "देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को महर्षिदेव:कोटी आंगिरस ने निष्काम कर्म रूप यज्ञ उपासना की शिक्षा दी थी, जिसे ग्रहण कर श्रीकृष्ण 'तृप्त' अर्थात पूर्ण पुरुष हो गए थे।"
  • 'मनुस्मृति' में भी यह कथा है कि आंगिरस नामक एक ऋषि को छोटी अवस्था में ही बहुत ज्ञान हो गया था; इसलिए उसके काका-मामा आदि बड़े बूढ़े नातीदार उसके पास अध्ययन करने लग गए थे। एक दिन पाठ पढ़ाते–पढ़ाते आंगिरस ने कहा "पुत्रका इति होवाच ज्ञानेन परिगृह्य तान्"। बस, यह सुनकर सब वृद्धजन क्रोध से लाल हो गए और कहने लगे कि- "यह लड़का मस्त हो गया है! उसको उचित दण्ड दिलाने के लिए उन लोगों ने देवताओं से शिकायत की"। देवताओं ने दोनों ओर का कहना सुन लिया और यह निर्णय लिया कि- 'आंगिरस ने जो कुछ तुम्हें कहा, वही न्याय है।' इसका कारण यह है कि-

न तेन वृद्धो भवति येनास्य पलितं शिरः।
यो वै युवाप्यधीयानस्तं देवाः स्थविरं विदुः।।

'सिर के बाल सफ़ेद हो जाने से ही कोई मनुष्य वृद्ध नहीं कहा जा सकता; देवगण उसी को वृद्ध कहते हैं, जो तरुण होने पर भी ज्ञानवान हो|'


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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