अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना

महाभारत शल्य पर्व में गदा पर्व के अंतर्गत 58वें अध्याय में अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

भीम और दुर्योधन के मध्य भीषण गदा युद्ध

संजय कहते हैं- राजन! महात्मा भगवान केशव का वचन सुनकर अर्जुन ने भीमसेन के देखते हुए अपनी बायीं जांघ को ठोंका। इससे संकेत पाकर भीमसेन रणभूमि में गदा द्वारा यमक तथा अन्य प्रकार के विचित्र मण्डल दिखाते हुए विचरने लगे। राजन! पाण्डुपुत्र भीमसेन आपके शत्रु को मोहित करते हुए-से दक्षिण, वाम और गो मूत्रक मण्डल से विचरने लगे। इसी प्रकार गदायुद्ध की प्रणाली का विशेषज्ञ आपका पुत्र भी भीमसेन के वध की इच्छा से शीघ्रतापूर्वक विचित्र पैंतरे देता हुआ विचरने लगा। वैर का अन्त करने की इच्छा वाले वे दोनों वीर रणभूमि में चन्दन और अगुरु से चर्चित भयंकर गदाएं घुमाते हुए कुपित काल के समान प्रतीत होते थे। जैसे दो गरुड़ किसी सर्प के मांस को पाने की इच्छा से परस्पर लड़ रहे हों, उसी प्रकार एक दूसरे के वध की इच्छा वाले वे दोनों पुरुषप्रवर प्रमुख वीर भीमसेन और दुर्योधन आपस में जूझ रहे थे। विचित्र मण्डलों (पैंतरों) से विचरते हुए राजा दुर्योधन और भीमसेन की गदाओं के टकराने से वहाँ आग की लपटे प्रकट होने लगीं। राजन! जैसे वायु से विक्षुब्ध हुए दो समुद्र एक दूसरे से टकरा रहे हों अथवा दो मतवाले हाथी परस्पर चोट कर रहे हों, उसी प्रकार वहाँ एक दूसरे पर समान रूप से प्रहार करने वाले दोनों बलवान वीरों के परस्पर चोट करने पर गदाओं के टकराने की आवाज वज्र की कड़क के समान प्रकट होती थी। उस समय उस अत्यन्त भयंकर घमासान युद्ध में शत्रुओं का दमन करने वाले वे दोनों वीर परस्पर युद्ध करते हुए बहुत थक गये। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! तब दोनों दो घड़ी तक विश्राम करके पुनः विशाल गदाएं हाथ में लेकर क्रोधपूर्वक एक दूसरे पर प्रहार करने लगे।

राजेन्द्र! गदा की चोट से एक दूसरे को घायल करते हुए उन दोनों में खुले तौर पर घोर युद्ध हो रहा था। बैल के समान विशाल नेत्रों वाले वे दोनों वेगशाली वीर समरांगण में परस्पर धावा करके कीचड़ में खड़े हुए दो भैंसों के समान एक दूसरे पर चोट करते थे। उन दोनों के सारे अंग गदा के प्रहार से जर्जर हो गये थे और दोनों ही खून से लथपथ हो गये थे। उस दशा में वे हिमालय पर खिले हुए दो पलाश वृक्षों के समान दिखायी देते थे। जब अर्जुन ने छिद्र की ओर संकेत किया, तब कनखियों से उसे देखकर दुर्योधन सहसा भीमसेन की ओर बढ़ा।[1] रणभूमि में उसे निकट आया देख बुद्धिमान एवं बलवान भीम ने उस पर बड़े वेग से गदा चलायी। प्रजानाथ! उन्हें गदा चलाते देख आपका पुत्र सहसा उस स्थान से हट गया और वह गदा व्यर्थ होकर पृथ्वी पर गिर पड़ी। कुरुश्रेष्ठ! उस प्रहार से अपने को बचाकर आपके पुत्र ने भीमसेन पर बड़े वेग से गदा द्वारा आघात किया। उसकी चोट से अमित तेजस्वी भीम के शरीर से रक्त की धारा बह चली साथ ही उस प्रहार के गहरे आघात से अन्हें मूर्छा-सी आ गयी।[2]

भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना

उस समय दुर्योधन यह न जान सका कि रणभूमि में पाण्डु पुत्र भीमसेन अधिक पीड़ित हो गये हैं। यद्यपि उनके शरीर में अत्यन्त वेदना हो रही थी तो भी भीमसेन उसे संभाले रहे। उसने यही समझा कि रणक्षेत्र में भीमसेन अब मुझ पर प्रहार करने के लिये खड़े है; अतः बचने की ही चेष्टा में संलग्न होकर आपके पुत्र ने पुनः उन पर प्रहार नहीं किया। राजन! तदनन्तर दो घड़ी सुस्ता कर प्रतापी भीमसेन ने निकट आये हुए दुर्योधन पर बड़े वेग से आक्रमण किया। भरतश्रेष्ठ! अमित तेजस्वी भीम को रोषपूर्वक धावा करते देख आपके पुत्र ने उनके उस प्रहार को व्यर्थ कर देने की इच्छा की। राजन! भीमसेन को छलने के लिये आपके महामनस्वी पुत्र ने पहले वहाँ स्थिरतापूर्वक खड़े रहने का विचार करके फिर उछल कर दूर हट जाने की इच्छा की। भीमसेन समझ गये कि राजा दुर्योधन क्या करना चाहता है। अतः पैंतरे से छलने और ऊपर उछलने की इच्छा वाले दुर्योधन के ऊपर आक्रमण करके भीमसेन ने सिंह के समान गर्जन की और उसकी जांघों पर बड़े वेग से गदा चलायी। भयंकर कर्म करने वाले भीमसेन के द्वारा चलायी हुई वह गदा वज्रपात के समान गिरी और दुर्योधन की सुन्दर दिखायी देने वाली जांघों को उसने तोड़ दिया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 58 श्लोक 17-35
  2. 2.0 2.1 महाभारत शल्य पर्व अध्याय 58 श्लोक 36-56

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