अब तुमकौं मैं जान न दैहौं।
दान लेउँ कौड़ी कौड़ी करि, बैर आपनौ लैहौं।।
गोरस खाई, बाच्यौ सो डारयौ मटुकी डारीं फोरि।
दै दै गारि नारि झकझोरीं, चोली के बंद तोरि।।
हँसत सखा करतारी दै दै, बन मैं रोकीं नारि।
सुनत लोग घर तैं आवैंगे, सकिहौ नहीं सम्हारि।।
घर के लोगनि कहा डरावति कंसहिं आनि बुलाइ।
सूर सबै जुवतिनि कैं देखत, पूजा करौं बनाई।।1545।।