अग्निष्टोम यज्ञ

अग्निष्टोम यज्ञ का उल्लेख हिन्दू पौराणिक ग्रंथ महाभारत में हुआ है। ब्रह्माण्ड और वायु पुराण के अनुसार यह स्वर्ग प्राप्त करने की इच्छा से किया जाने वाला एक प्रकार का यज्ञ हैं, जिसकी उत्पत्ति ब्रह्माजी के पहले मुख से हुई, जिसे प्राय: अग्निहोत्री ब्राह्मण ही कर सकते थे।

  • इसमें ऋत्विज सोलह हैं और इसकी पूर्णाहुति पाँच दिनों में होती है।[1]
  • इससे पितृगण का मान बढ़ता है और वे सन्तुष्ट रहते हैं।
  • यह यज्ञ बाली ने किया था।[2]
  • मत्स्य पुराण के अनुसार इस यज्ञ में पशुबलि आवश्यक है।[3]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 12 |

  1. ब्रह्माण्ड पुराण 2.8.50; वायु पुराण 9.49; विष्णु पुराण 1.5.53
  2. ब्रह्माण्ड पुराण 3.7.268; 11.43; 15.11
  3. मत्स्य पुराण 53.33; 58.53; 239.30

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