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गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) |
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(गोपी कह रही है-) सखी ! (श्यामसुंदर के)ओठों की लालिमा तो देख ! इनका शरीर मरकतमणि (नीलम) से भी सुंदर है । (होठों की ललाई के कारण) ये वनमाली ऐसे लगते हैं, प्रातकालीन श्यामल घटापर अरूण (बालरवि)- का प्रकाश हो रहा हो। (बादल में) जैसे बीच-बीच में बिजली चमके, वैसे ही (इनके शरीर पर) सुंदर पीताम्बर फहरा रहा है । अथवा (यों कहें कि) तमाल (वृक्ष) पर यह कोई पीली लता चढी है, जिसमें दो सुपक्व बिम्बगल हैं । यद्यपि यह उपमा (उसके सामने आने में )लज्जित ही होती है, फिर भी वे कुछ ऐसे लगते हैं मानो नीलमणि के सम्पुट (डिब्बे) में मोती से भरपूर सिंदूर छिड़ककर रखें हों, अथवा लालमणियों के मध्य हीरे के कण जड़कर उनपर मूँगोंकि पंक्ति रखी गयी हो अथवा मनोहर बंधुक-पुष्प (जवाकुसुम)-के नीचे जलकणों की कांति झलमल रही हो अथवा लाल कमल के मध्यम में स्वय सुंदरता जा बैठी हो । सूरदासजी कहते हैं कि (मोहन के )लाल-लाल ओठों की शोभा का वर्णन करने पर भी (वह अधूरा ही रहता है, पूरा) वर्णन किया नहीं जा पाता । | (गोपी कह रही है-) सखी ! (श्यामसुंदर के)ओठों की लालिमा तो देख ! इनका शरीर मरकतमणि (नीलम) से भी सुंदर है । (होठों की ललाई के कारण) ये वनमाली ऐसे लगते हैं, प्रातकालीन श्यामल घटापर अरूण (बालरवि)- का प्रकाश हो रहा हो। (बादल में) जैसे बीच-बीच में बिजली चमके, वैसे ही (इनके शरीर पर) सुंदर पीताम्बर फहरा रहा है । अथवा (यों कहें कि) तमाल (वृक्ष) पर यह कोई पीली लता चढी है, जिसमें दो सुपक्व बिम्बगल हैं । यद्यपि यह उपमा (उसके सामने आने में )लज्जित ही होती है, फिर भी वे कुछ ऐसे लगते हैं मानो नीलमणि के सम्पुट (डिब्बे) में मोती से भरपूर सिंदूर छिड़ककर रखें हों, अथवा लालमणियों के मध्य हीरे के कण जड़कर उनपर मूँगोंकि पंक्ति रखी गयी हो अथवा मनोहर बंधुक-पुष्प (जवाकुसुम)-के नीचे जलकणों की कांति झलमल रही हो अथवा लाल कमल के मध्यम में स्वय सुंदरता जा बैठी हो । सूरदासजी कहते हैं कि (मोहन के )लाल-लाल ओठों की शोभा का वर्णन करने पर भी (वह अधूरा ही रहता है, पूरा) वर्णन किया नहीं जा पाता । | ||
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13:12, 4 अप्रॅल 2018 के समय का अवतरण
विषय सूची
श्रीकृष्ण माधुरी -सूरदास
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सूही बिलावल130 (गोपी कह रही है-) सखी ! (श्यामसुंदर के)ओठों की लालिमा तो देख ! इनका शरीर मरकतमणि (नीलम) से भी सुंदर है । (होठों की ललाई के कारण) ये वनमाली ऐसे लगते हैं, प्रातकालीन श्यामल घटापर अरूण (बालरवि)- का प्रकाश हो रहा हो। (बादल में) जैसे बीच-बीच में बिजली चमके, वैसे ही (इनके शरीर पर) सुंदर पीताम्बर फहरा रहा है । अथवा (यों कहें कि) तमाल (वृक्ष) पर यह कोई पीली लता चढी है, जिसमें दो सुपक्व बिम्बगल हैं । यद्यपि यह उपमा (उसके सामने आने में )लज्जित ही होती है, फिर भी वे कुछ ऐसे लगते हैं मानो नीलमणि के सम्पुट (डिब्बे) में मोती से भरपूर सिंदूर छिड़ककर रखें हों, अथवा लालमणियों के मध्य हीरे के कण जड़कर उनपर मूँगोंकि पंक्ति रखी गयी हो अथवा मनोहर बंधुक-पुष्प (जवाकुसुम)-के नीचे जलकणों की कांति झलमल रही हो अथवा लाल कमल के मध्यम में स्वय सुंदरता जा बैठी हो । सूरदासजी कहते हैं कि (मोहन के )लाल-लाल ओठों की शोभा का वर्णन करने पर भी (वह अधूरा ही रहता है, पूरा) वर्णन किया नहीं जा पाता । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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