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- तुम जु कहत हरि ह्रदय रहत है -सूरदास
- तुम जु दयाल दयानिधि कहियत -सूरदास
- तुम जो कहति राधिका भोरी -सूरदास
- तुम तजि और कौन पै जाउँ -सूरदास
- तुम तै को अति जान है 4 -सूरदास
- तुम तौ अपनै ही मुख झूठे -सूरदास
- तुम तौ कहत सँदेसौ आनि -सूरदास
- तुम देखत रैहौ हम जैहैं -सूरदास
- तुम देखे मैं नहीं पत्यानी -सूरदास
- तुम धर जाहु दान कौ दैहै -सूरदास
- तुम निज रूप इहिं भांति छिपायो -सूरदास
- तुम नीके दुहि जानत गैया -कुम्भनदास
- तुम न्याय कहावत कमल नैन -सूरदास
- तुम पठवत गोकुल कौ जैहौ -सूरदास
- तुम पावत हम घोष न जाहि -सूरदास
- तुम पावत हम घोष न जाहिं -सूरदास
- तुम पै कौन दुहावै गैया -सूरदास
- तुम प्रभु मोसौं बहुत करी -सूरदास
- तुम प्रियतम कै बैरिनि मेरी -सूरदास
- तुम बरषैं ब्रज कुसल परयौ -सूरदास
- तुम बिन भूलोइ भूलौ डोलत -सूरदास
- तुम बिन स्याम सुने कौ मेरी -मीराँबाई
- तुम बिनु नंद सुवन इहिं गोकुल -सूरदास
- तुम बिनु नंदसुवन इहिं गोकुल -सूरदास
- तुम बिनु बीतत छिन-छिन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम बिनु मेरै हितू न कोऊ -सूरदास
- तुम बिनु हम अनाथ ब्रजबासी -सूरदास
- तुम भली निवाही प्रीति -सूरदास
- तुम मेरी प्रभुता बहुत करी -सूरदास
- तुम मेरी बेसरि कौं धाई -सूरदास
- तुम यह शायद समझ रही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम रीझे की उनहिं रिझाए -सूरदास
- तुम लछिमन निज पुरहिं-सिधारौ -सूरदास
- तुम लछिमन या कुंज-कुटी-सूरदास
- तुम लछिमन या कुंज-कुटी -सूरदास
- तुम लोगों से हुआ न होगा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम वरषै ब्रज कुसल परयौ -सूरदास
- तुम विनु सांकर को काकौ -सूरदास
- तुम सम निठुर दूजौ कौन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम सुणौ दयाल म्हाँरी अरजी -मीराँबाई
- तुम सुणौ दयाल म्हांरी अरजी -मीराँबाई
- तुम सुरपति कौ मान हरयौ -सूरदास
- तुम सौं कछु दुराब है मेरौ -सूरदास
- तुम सौं कछु दुराव है मेरौ -सूरदास
- तुम सौं कहत सकुचतिं महरि -सूरदास
- तुम सौं कहा कहौं सुंदर घन -सूरदास
- तुम हरि सांकरे कै साथी -सूरदास
- तुम हो यन्त्री, मैं यन्त्र -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम हौ अंतरजामि कन्हांई -सूरदास
- तुम हौ अंतरजामि कन्हाई -सूरदास
- तुमकौ कमलनयन कवि गावत -सूरदास
- तुमकौ कैसे स्याम लगे -सूरदास
- तुमकौ नंद महर मरूहाए -सूरदास
- तुमकौं कमलनयन कवि गावत -सूरदास
- तुमकौं नंद महर मरुहाए -सूरदास
- तुमने दिया सदा ही मुझको -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुमने मुझे दिया सुख नित ही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुमरे कारण सब सुख छाडया -मीराँबाई
- तुमसे सदा लिया ही मैंने -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुमहि उलाट हम पर सतराने -सूरदास
- तुमहि तजि जाऊँ कहाँ अब प्यारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुमहि बिना मन धिक अरू धिक घर -सूरदास
- तुमहि विमुख धिक धिक नर नारि -सूरदास
- तुमहिं उलटि हम पर सतराने -सूरदास
- तुमहिं कहत कोउ करै सहाइ -सूरदास
- तुमहिं दोष नहि हम अति बौरी -सूरदास
- तुमहिं बिना मन धिक अरु धिक घर -सूरदास
- तुमहिं बिमुख धिक धिक नर नारि -सूरदास
- तुमहिं बिमुख रघुनाथ -सूरदास
- तुमहिं मधुप गोपाल दुहाई -सूरदास
- तुमही धन तुमही मन मेरे -सूरदास
- तुमहीं मोकों ढीठ कियौ -सूरदास
- तुमहीं मोकौं ढीठ कियौ -सूरदास
- तुमुल युद्ध
- तुम्बुरु
- तुम्बुरु (गन्धर्व)
- तुम्बुरु (बहुविकल्पी)
- तुम्बुरू
- तुम्ह कहि आवत ऊधौ बात -सूरदास
- तुम्ह बिन इहाँ कुँवर बर मेरे -सूरदास
- तुम्हरी गति न कछु कहि जाइ -सूरदास
- तुम्हरी प्रीति -सूरदास
- तुम्हरी बलैया लागै नागर -सूरदास
- तुम्हरी भावती कह्यौ -सूरदास
- तुम्हरी रीति हरि पूरब जनम की -सूरदास
- तुम्हरे देस कागद -सूरदास
- तुम्हरे देस कागद मसि खूटी -सूरदास
- तुम्हरे पूजियै पिय पाइ -सूरदास
- तुम्हरे बिरह व्रजनाथ -सूरदास
- तुम्हारी प्रीति, किधौ तरवारि -सूरदास
- तुम्हारी प्रीति -सूरदास
- तुम्हारी स्मृति नित बन साकार -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम्हारी स्मृति ही है आधार -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम्हारोइ चित्र बनाउ कियौ -सूरदास
- तुम्हारौ गोकुल (व्याख्या) -सूरदास
- तुम्हारौ गोकुल -सूरदास
- तुम्हारौ गोकुल हो ब्रजनाथ -सूरदास
- तुम्हें क्या कहूँ, क्या न कहूँ -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम्हें यदि सुख हो, हे हृदयेश -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तुम्है कोउ हेरत है हो कान्ह -सूरदास
- तुम्हैं पहिचानति नाहीं बीर -सूरदास
- तुम्हरी कृपा गोपाल गुसाई -सूरदास
- तुम्हरी कृपा बिनु कौन उबारे -सूरदास
- तुम्हरै चित रजधानी नीकी -सूरदास
- तुम्हरैं चित रजधानी नीकी -सूरदास
- तुम्हरैं भजन सबहि सिंगार -सूरदास
- तुम्हरौ नाम तजि प्रभु जगदीसर -सूरदास
- तुम्हारी भक्ति हमारे प्रान -सूरदास
- तुम्हारी माया महाप्रबल -सूरदास
- तुरत कमल अब देहु पठाइ -सूरदास
- तुरत गए नँद-सदन कन्हाई -सूरदास
- तुरत तहां सब बिप्र बुलाए -सूरदास
- तुरत ब्रज जाहु उपँगसुत आजु -सूरदास
- तुर्वसु
- तुलसी
- तुलसी विवाह
- तुलसीदास
- तुलाधार
- तुल्या नदी
- तुव दरस की आस पिय व्रत 2 -सूरदास
- तुव मुख देखि डरत ससि भारी -सूरदास
- तुषार
- तुषार (जाति)
- तुषार (बहुविकल्पी)
- तुष्टि
- तुष्टिमान
- तुहर
- तुहार
- तुही पियभावति नाहिंन आन -सूरदास
- तुहीं पियभावति नाहिंन आन -सूरदास
- तुहुण्ड
- तुह्मरी एक बड़ी ठकुराई -सूरदास
- तू अलि कहा परयौ है पैड़े -सूरदास
- तू आई है बात बनावन -सूरदास
- तू काहे कौं करति सयानी -सूरदास
- तू को है री, कौन पठाई -सूरदास
- तू चलि री बन बोली स्याम -सूरदास
- तू जननी अब दुख जनि मानहि -सूरदास
- तू मोसौं(दधि) दान मांगि किन -सूरदास
- तू मोसौं दधि दान मांगि किन -सूरदास
- तू मोहीं कौं मारन जानति -सूरदास
- तू री छाँह किये हरि राखति -सूरदास
- तू सुनि कान दै री मुरली धुनि -सूरदास
- तूँ नागर नंदकुमार -मीराँबाई
- तूं नागर नंदकुमार -मीराँबाई
- तूणि
- तूणीर
- तूर्य
- तृणक
- तृणप
- तृणबिन्दु
- तृणबिन्दु (बहुविकल्पी)
- तृणबिन्दु (सरोवर)
- तृणसोमांगिरा
- तृणावर्त
- तृणावर्त उद्धार
- तृणावर्त वधस्थल, महावन
- तृणावर्त वधस्थल महावन
- तृणावर्त संहारकारी
- तृतीया
- तृतीया (नदी)
- तृतीया (बहुविकल्पी)
- तृष्णा (महाभारत संदर्भ)
- तृष्णा के परित्याग के विषय में माण्डव्य मुनि और जनक का संवाद
- ते गुन बिसरत नाही उर तै -सूरदास
- ते गुन बिसरत नाहीं उर तैं -सूरदास
- ते जु पुकारे हरि पै जाइ -सूरदास
- ते दिन बिसरि गए इहाँ आए -सूरदास
- तेऊ चाहत कृपा तुम्हारी -सूरदास
- तेऊ चाहत कृपा तुम्हारी -सूरदास
- तेज
- तेज (बहुविकल्पी)
- तेज (सूर्य)
- तेजपति (सूर्य)
- तेजेयु
- तेरहवें दिन के युद्ध की समाप्ति एवं रणभूमि का वर्णन
- तेरा कोई नहिं रोकणहार -मीराँबाई
- तेरी चिन्ता, तेरी पीड़ा -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तेरी जीवन मूरि मिलहि किन माई -सूरदास
- तेरी माइ सकल जग खोयौ -सूरदास
- तेरी शान -मदनगोपाल ʻव्रजेशʼ
- तेरी सौं सुनु सुनु मेरी मैया -सूरदास
- तेरे उर की शुचि सुन्दरता -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तेरे बिना नहीं क्षण भर भी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तेरे हित कौ कहति हौ -सूरदास
- तेरे हित कौ कहति हौं -सूरदास
- तेरै आवैगे आज सखी हरि -सूरदास
- तेरै भुजनि बहुत बल होइ कन्हैया -सूरदास
- तेरै मानिबेहू तै री मान नीकौ लागत है -सूरदास
- तेरैं आवैंगे आज सखी हरि -सूरदास
- तेरैं भुजनि बहुत बल होइ कन्हैया -सूरदास
- तेरैं मानिबेहू तैं री मान नीकौ लागत है -सूरदास
- तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ -सूरदास
- तेरो कोई नहिं रोकणहार -मीराँबाई
- तेरो बुरौ न कोऊ मानै -सूरदास
- तेरो मरम नहिं पायौ रे जोगी -मीराँबाई
- तेरो मरम नाहिं पायो -मीराँबाई
- तेरौ तब तिहिं दिन -सूरदास
- तेरौ बदन देखि उडुपति जु दुरयौ -सूरदास
- तेरौ माई गोपाल रन-सूरौ -सूरदास
- तै कछु नहिं काहू कौ लीन्हौ -सूरदास
- तै कैकई कुमंत्र कियौ -सूरदास
- तै जु नीलपट ओट दियौ री -सूरदास
- तै दरद नहिं जान्यूँ -मीराँबाई
- तै मेरी लाग गँवाई हो -सूरदास
- तै ही स्याम भले पहिचाने -सूरदास
- तैं कछु नहिं काहू कौ लीन्हौ -सूरदास
- तैं कत तोरयौ हार नी सरि कौ -सूरदास
- तैं जु नीलपट ओट दियौ री -सूरदास
- तैं मेरी गैंद चुराई-मीराँबाई
- तैं मेरी गैंद चुराई -मीराँबाई
- तैं मेरैं हित कहति सही -सूरदास
- तैं मेरैं हित कहति सहो -सूरदास
- तैं ही स्याम भले पहिचाने -सूरदास
- तैजस तीर्थ
- तैत्तिरि
- तैत्तिलि
- तैही उनकौ मूड़ चढायौ -सूरदास
- तैहीं उनकौं मूड़ चढ़ायौ -सूरदास
- तो कहै हरि सौ बात हमारी -सूरदास
- तो पर वारी हौं नंदलाल -सूरदास
- तो पर वारी हौं नंदलाल 2 -सूरदास
- तो पर वारी हौं नंदलाल 3 -सूरदास
- तो मैं कृष्ण हेलुवा खेले -सूरदास
- तोकि कारी कामरि लकुटि अब भूलि गई -सूरदास
- तोड़-फोड़कर मुझे बना लो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तोताद्रि नांगनेर
- तोमर अस्त्र
- तोमैं कृष्न हेलुवा खेले -सूरदास
- तोरी सावरी सुरत नंदलालाजी -मीरां
- तोशल
- तोषगाँव
- तोषगांव
- तोसे मिलहौं, हे राधिके! -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- तोसों लाग्यो नेह रे प्यारे, नागर नंद कुमार -मीरां
- तोसौ गारि कहा कहि दीजै -सूरदास
- तोसौं कहा धुताई करिहौं -सूरदास
- तोहि किन रूठन सिखई प्यारी -सूरदास
- तोहि छबि राजै ब्रजराजसंग जागे की -सूरदास
- तोहिं कवन मति रावन आई -सूरदास
- तोहिं छबि राजै ब्रजराजसंग जागे की -सूरदास
- तोहिं बोलै री मधु-केसि-मंथन -सूरदास
- तोहिं स्याम हम कहा दिखावै -सूरदास
- तोहिं स्याम हम कहा दिखावैं -सूरदास
- तोहूँ कौ व्यापी री माई -सूरदास
- तौ तू उड़ि न जाइ रे काग -सूरदास
- तौ लगि बेगि हरौ किन पीर -सूरदास
- तौ हम मानै बात तुम्हारी -सूरदास
- त्याग (महाभारत संदर्भ)
- त्याग और सांख्यसिद्धान्त का वर्णन
- त्याग की महिमा के विषय में शम्पाक का उपदेश
- त्यागमूर्ति श्रीराधा आयीं -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- त्यौं-त्यौं मोहन नाचै -सूरदास
- त्रयोदशी
- त्रय्यारुणि
- त्रसदस्यु
- त्रिककुद
- त्रिकूट
- त्रिगंग
- त्रिगर्त
- त्रिगर्त (बहुविकल्पी)
- त्रिगर्त (राजा)
- त्रिगर्तों और कौरवों का मत्स्यदेश पर धावा
- त्रिजटा
- त्रिजटी सीता पै चलि आई -सूरदास
- त्रित
- त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना
- त्रित मुनि का यज्ञ
- त्रिदिवा
- त्रिधन्वा
- त्रिधातु
- त्रिपुर
- त्रिपुर (बहुविकल्पी)
- त्रिपुर (राज्य)
- त्रिपुरभैरवी
- त्रिपुरा
- त्रिराव
- त्रिवर्ग का निरूपण
- त्रिवर्ग के विचार का वर्णन
- त्रिवर्चा
- त्रिवेणु
- त्रिशंकु
- त्रिशिरा
- त्रिशूल अस्त्र
- त्रिशूलखात
- त्रिषवण
- त्रिस्थान
- त्रिस्रोतसी
- त्रुटि (मातृका)
- त्रेता (सूर्य)
- त्रेता युग
- त्रेतायुग
- त्रैबलि
- त्र्यम्बक
- त्र्यम्बक (बहुविकल्पी)
- त्र्यम्बक (रुद्र)
- त्र्यम्बक (शिव)
- त्वक
- त्वष्टा
- त्वष्टा (ऋषि)
- त्वष्टा (बहुविकल्पी)
- त्वष्टा (सूर्य)
- त्वष्टाधर
- त्वाष्ट्र
- थकित भई राधा ब्रजनारि -सूरदास
- थकित भए मोहन मुख नैन -सूरदास
- थके पर छके न रस-प्यासे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- थाँने काँई काँई कह समझाऊँ -मीराँबाई
- थाँने काँई काँई कह समझाऊँ म्हारा बाल्हा गिरधारी -मीराँबाई
- थांने कांई कांई कह समझाऊं -मीराँबाई
- थारो विरुद्ध घेटे कैसी भाईरे -मीरां
- थीं वे विकसित शारदीय -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ -मीराँबाई
- थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ -मीरां
- थौरे जीवन भयौ तन भारौ -सूरदास
- दंड
- दंडकारण्य
- दंडगौरी
- दंडताडन
- दंतधावन टीला
- दंतधावन टीला, महावन
- दंतधावन टीला महावन
- दंतवक्र
- दंपति कुंजद्वार खरे -सूरदास
- दंश
- दंश असुर
- दंशकुंड
- दंशकुण्ड
- दक्ष
- दक्ष, वैवस्वत मनु तथा उनके पुत्रों की उत्पत्ति
- दक्ष (ऋषि)
- दक्ष (गरुड़)
- दक्ष (बहुविकल्पी)
- दक्ष (महाभारत संदर्भ)
- दक्ष (विश्वेदेवा)
- दक्ष सावर्णि मनु
- दक्षा
- दक्षिण पांचाल
- दक्षिण मल्ल
- दक्षिण सागर
- दक्षिणमल्ल
- दक्षिणा
- दक्षिणा (बहुविकल्पी)
- दक्षिणा (महाभारत संदर्भ)
- दक्षिणा (यज्ञ पत्नी)