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- उर पत देखियत है ससि सात -सूरदास
- उर पत देखियत हैं ससि सात -सूरदास
- उर बैजती सोभा अति बनी -सूरदास
- उरग
- उरग-नारि सब कहतिं परस्पर -सूरदास
- उरग लियौ हरि कौं लपटाइ -सूरदास
- उरगा
- उरगावासी
- उरुवल्क
- उर्मिला
- उर्मिला (बहुविकल्पी)
- उर्मिला (यम पत्नी)
- उर्मिला नदी
- उर्वरा
- उर्वशी
- उर्वशी का अर्जुन को शाप
- उर्वशीतीर्थ
- उर्वी
- उलटि पग कैसै दीन्ही नंद -सूरदास
- उलटि पग कैसैं दीन्हौ नंद -सूरदास
- उलटी रीति तिहारी ऊधौ -सूरदास
- उलूक
- उलूक (देश)
- उलूक (बहुविकल्पी)
- उलूक (राजा)
- उलूक (विश्वामित्र पुत्र)
- उलूक (शकुनि पुत्र)
- उलूक (शकूनि पुत्र)
- उलूकाश्रम
- उलूत
- उलूपी
- उलूपी और चित्रांगदा सहित बभ्रुवाहन का स्वागत
- उलूपी का संजीवनी मणि द्वारा अर्जुन को पुन: जीवित करना
- उलूपी द्वारा अर्जुन की पराजय का रहस्य बताना
- उल्कामुख
- उल्मुक
- उल्मुक (जरासन्ध मित्र)
- उल्मुक (बलभद्र पुत्र)
- उल्मुक (बहुविकल्पी)
- उल्मुक (राजा)
- उल्हरि आयौ सीतल बूँद पवन पुरवाई -सूरदास
- उल्मुक
- उशंगव
- उशना
- उशना का चरित्र
- उशना को शुक्र नाम की प्राप्ति
- उशिज
- उशीनर
- उशीनर (बहुविकल्पी)
- उशीनर (वृष्णिवंशी यादव)
- उशीनर (शिबि पिता)
- उशीनर का ययातिकन्या से शिबि नामक पुत्र उत्पन्न करना
- उशीनर द्वारा शरणागत कबूतर के प्राणों की रक्षा
- उशीरबीज
- उशीरबीज (पर्वत)
- उशीरबीज (बहुविकल्पी)
- उशीरबीर पर्वत
- उषंगु
- उषंगु (बहुविकल्पी)
- उषंगु (वृजिनीवान पुत्र)
- उषा
- उषापति
- उष्ट्रकर्णिक
- उष्णी
- उष्णीनाभ
- उस अरण्य में सर्वकामप्रद -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उस कैतवके लिये कर रही -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- उसके मध्य विराजित सस्मित -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊँचौ गोकुल नगर, जहाँ हरि खेलत होरी -सूरदास
- ऊखल बंधन लीला
- ऊखल बन्धन
- ऊजानी
- ऊदाबाई थांने बरजबरज मैं हारी -मीराँबाई
- ऊधव के उपदेश सुनो ब्रज नागरी -नंददास
- ऊधव के उपदेश सुनो ब्रज नागरी 2 -नंददास
- ऊधी तिहारे पा लागति हौ -सूरदास
- ऊधो चलौ बिदुर कै जइयै -सूरदास
- ऊधो मधुपुर का बासी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! कहा सिखावौ जोग -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! तुम ते कहौं का गोपी-प्रेम-महव -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! तुम तो बड़े बिरागी -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! तुहरे नैन अधूरे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! निठुर मो सम कौन -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! प्रिय तें कहियो -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! बिसरत नहिं मनभावनि -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! मो मैं नैकु न नेह -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! मोहन स्याम हमारे -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! सो मनमोहन रूप -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! सोई प्रीति अनन्य -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! स्याम बड़े ही धूत -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ! हम क्यौं स्याम -हनुमान प्रसाद पोद्दार
- ऊधौ अँखियाँ अति अनुरागी -सूरदास
- ऊधौ अति ओछे की प्रीति -सूरदास
- ऊधौ अब कछु कहत न आवै -सूरदास
- ऊधौ अब कछु कही न जाइ -सूरदास
- ऊधौ अब कोउ कछू कहौ -सूरदास
- ऊधौ अब चित भए कठोर -सूरदास
- ऊधौ अब नहिं स्याम हमारे -सूरदास
- ऊधौ अब हम समुझि भई -सूरदास
- ऊधौ आवै यहै परेखौ -सूरदास
- ऊधौ इक पतिया हमरौ लीजै -सूरदास
- ऊधौ इतनी कहियो जाइ -सूरदास
- ऊधौ इतनी कहियौ जाइ -सूरदास
- ऊधौ इतनी कहियौ बात -सूरदास
- ऊधौ इतनी जाइ कहौ -सूरदास
- ऊधौ इन नैननि अंजन देहु -सूरदास
- ऊधौ इन नैननि नेम लियौ -सूरदास
- ऊधौ इन बतियनि कैसै मन दीजै -सूरदास
- ऊधौ इहिं ब्रज बिरह बढ्यौ -सूरदास
- ऊधौ उदित भए दुख तरनि -सूरदास
- ऊधौ एक मेरी बात -सूरदास
- ऊधौ ऐसी हम गुपाल बिनु -सूरदास
- ऊधौ ऐसे काम न कीजै -सूरदास
- ऊधौ और कछू कहिबै कौं -सूरदास
- ऊधौ औरे कान्ह भए -सूरदास
- ऊधौ औरै कथा कहौ -सूरदास
- ऊधौ कछुक समुझि परी -सूरदास
- ऊधौ कत ये बातै चालीं -सूरदास
- ऊधौ कत हम हरि बिसराई -सूरदास
- ऊधौ कपट रूप के मूल -सूरदास
- ऊधौ कब हरि आवैगे -सूरदास
- ऊधौ कबहुँ सुरति करै कान्ह तुम्हारे -सूरदास
- ऊधौ करि रहीं हम जोग -सूरदास
- ऊधौ कह बूझत तन की दुबराई -सूरदास
- ऊधौ कहँ की प्रीति हमारै -सूरदास
- ऊधौ कहत न कछू बनै -सूरदास
- ऊधौ कहत बात ह्वै ढीठ -सूरदास
- ऊधौ कहा हमारी चूक -सूरदास
- ऊधौ कहि न सकति इक बात -सूरदास
- ऊधौ कहि मधुबन की रीति -सूरदास
- ऊधौ कहियै बात सोहती -सूरदास
- ऊधौ कहियौ जाइ राधिकहिं2 -सूरदास
- ऊधौ कहियौ जाइ राधिकहिं -सूरदास
- ऊधौ कहियौ यह संदेस -सूरदास
- ऊधौ कही सु फेरि न कहिऐ -सूरदास
- ऊधौ कहौ कहन जौ पारौ -सूरदास
- ऊधौ कहौ साँची बात -सूरदास
- ऊधौ कहौ हमैं क्यौ बिसरै -सूरदास
- ऊधौ कहौ हरि कुसलात -सूरदास
- ऊधौ कह्यौ तिहारौ कीन्हौ -सूरदास
- ऊधौ कह्यौ धन्य व्रजवाला -सूरदास
- ऊधौ काल चाल औरासी -सूरदास
- ऊधौ काहे कौ भक्त कहावत -सूरदास
- ऊधौ किहिं बिधि कीजै जोग -सूरदास
- ऊधौ कुलिस भई यह छाती -सूरदास
- ऊधौ कैसे हैं वे लोग -सूरदास
- ऊधौ कैसै जीवै कमलनयन बिनु -सूरदास
- ऊधौ को तुम्हरे कहै लागै -सूरदास
- ऊधौ को हरि हितू हमारे -सूरदास
- ऊधौ कोउ नाहिन अधिकारी -सूरदास
- ऊधौ कोकिल कूजत कानन -सूरदास
- ऊधौ कौ उपदेस सुनौ किन कान दै -सूरदास
- ऊधौ क्यौ बिसरत वह नेह -सूरदास
- ऊधौ क्यौ राखौं ये नैन -सूरदास
- ऊधौ खरी जरी हरि सूलनि की -सूरदास
- ऊधौ चले स्याम आयसु सुनि -सूरदास
- ऊधौ जननी मेरी कौ मिलि -सूरदास
- ऊधौ जनि कहौ प्रभु कौ प्रभुताई -सूरदास
- ऊधौ जब व्रज पहुँचे जाइ -सूरदास
- ऊधौ जा हरि जोग सिखावत -सूरदास
- ऊधौ जाइ बहुरि सुनि आवहु -सूरदास
- ऊधौ जाके माथैं भाग -सूरदास
- ऊधौ जात ब्रजहिं सुने -सूरदास
- ऊधौ जानि परयौ सयान -सूरदास
- ऊधौ जानी न हरि यह बात -सूरदास
- ऊधौ जानी रे मैं जानी -सूरदास
- ऊधौ जान्यौ ज्ञान तिहारौ -सूरदास
- ऊधौ जाहु कहा बूझै कुसलात -सूरदास
- ऊधौ जाहु तुमहिं हम जाने -सूरदास
- ऊधौ जू, कहियौ तुम हरि सौ जाइ -सूरदास
- ऊधौ जू जाइ कहौ दूरि करै दासी -सूरदास
- ऊधौ जू त्रिभंगी छवि फेरि नहीं दीठी -सूरदास
- ऊधौ जो तुम हमहि सुनायौ -सूरदास
- ऊधौ जो मन होत बियौ -सूरदास
- ऊधौ जोग कहा है कीजतु -सूरदास
- ऊधौ जोग किधौ यह हाँसी -सूरदास
- ऊधौ जोग जानै कौन -सूरदास
- ऊधौ जोग जोग कहत -सूरदास
- ऊधौ जोग जोग हम नाही -सूरदास
- ऊधौ जोग जोगहि देहु -सूरदास
- ऊधौ जोग बिसरि जनि जाहु -सूरदास
- ऊधौ जोग सिखावन आए -सूरदास
- ऊधौ जौ अब कान्ह न ऐहै -सूरदास
- ऊधौ जौ कोउ यह तन फेरि बनावै -सूरदास
- ऊधौ जौ तुम बात कही -सूरदास
- ऊधौ जौ हरि आवहिं तौ प्रान रहै -सूरदास
- ऊधौ जौ हरि हितू तुम्हारे -सूरदास
- ऊधौ ज्यौ करि कृपा पाउँ धारत हौ -सूरदास
- ऊधौ तिहारे पा लागति हौ -सूरदास
- ऊधौ तुम अति चतुर सुजान -सूरदास
- ऊधौ तुम अपनौ जतन करौ -सूरदास
- ऊधौ तुम क्यौ नहिं जोग करौ -सूरदास
- ऊधौ तुम जानत गुप्तहि चारी -सूरदास
- ऊधौ तुम जु निकट के बासी -सूरदास
- ऊधौ तुम ब्रज मैं पैठ करी -सूरदास
- ऊधौ तुम यह निहचे जानौ -सूरदास
- ऊधौ तुम यह मति लै आए -सूरदास
- ऊधौ तुम सब साथी भोरे -सूरदास
- ऊधौ तुम हौ अति बड़ भागी -सूरदास
- ऊधौ तुम हौ चतुर सुजान -सूरदास
- ऊधौ तुम हौ निकट के वासी -सूरदास
- ऊधौ तुमहि स्याम की सौहै -सूरदास
- ऊधौ ते कत चतुर कहावत -सूरदास
- ऊधौ तौ हम जोग करे -सूरदास
- ऊधौ देखे ही व्रज जात -सूरदास
- ऊधौ धनि तुम्हारौ ब्यौहार -सूरदास
- ऊधौ नंद कौ गोपाल मोसी -सूरदास
- ऊधौ ना हम बिरहिनि ना तुम दास -सूरदास
- ऊधौ निरगुनहिं कहत तुमही सो लेहु -सूरदास
- ऊधौ नीकी लाँबी चीठी -सूरदास
- ऊधौ नूतन राज भयौ -सूरदास
- ऊधौ नैकु सुजात हरि कौ स्रवननि सुन -सूरदास
- ऊधौ नैननि यह व्रत लीन्हौ -सूरदास
- ऊधौ पा लागति हौ कहियौ -सूरदास
- ऊधौ पूछति है ते बावरी -सूरदास
- ऊधौ प्रीति नई नित मीठी -सूरदास
- ऊधौ प्रेम गऐ प्रान रहै -सूरदास
- ऊधौ प्रेम भक्ति रहित -सूरदास
- ऊधौ बनि आए की बात -सूरदास
- ऊधौ बहुरौ ह्वैहै रास -सूरदास
- ऊधौ बात कही नहिं जाइ -सूरदास
- ऊधौ बात कहौ हरि आवन की -सूरदास
- ऊधौ बात तिहारी को सुनै -सूरदास
- ऊधौ बात सुनौ इक नैसी -सूरदास
- ऊधौ बिनतिं सुनौ इक मेरी -सूरदास
- ऊधौ बिरहौ प्रेम करै -सूरदास
- ऊधौ बूझति है अनुमान -सूरदास
- ऊधौ बेगि मधुबन जाहु -सूरदास
- ऊधौ बेगिही ब्रज जाहु -सूरदास
- ऊधौ ब्रज कौं गमन करौ -सूरदास
- ऊधौ ब्रज जनि गहरु लगावहु -सूरदास
- ऊधौ ब्रजहि जाहु पालागौ -सूरदास
- ऊधौ भली करी गोपाल -सूरदास
- ऊधौ भली करी ह्याँ आए -सूरदास
- ऊधौ भली भई ब्रज आए -सूरदास
- ऊधौ भूलि भलै भटके -सूरदास
- ऊधौ मथुरा ही लै जाहु -सूरदास
- ऊधौ मन अभिमान बढ़ायौ -सूरदास
- ऊधौ मन तौ एकहि आहि -सूरदास
- ऊधौ मन न भए दस बीस -सूरदास
- ऊधौ मन नहिं हाथ हमारै -सूरदास
- ऊधौ मन माने की बात -सूरदास
- ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाही -सूरदास
- ऊधौ मोहि ब्रज बिसरत नाहीं -सूरदास
- ऊधौ मौन साधि रहे -सूरदास
- ऊधौ यह न होइ रस रीति -सूरदास
- ऊधौ यह मन और न होइ -सूरदास
- ऊधौ यह मन ड़ौर न आवै -सूरदास
- ऊधौ यह मन डौर न आवै -सूरदास
- ऊधौ यह राधा सौ कहियौ -सूरदास
- ऊधौ यह हरि कहा करयौ -सूरदास
- ऊधौ यह हित लागत काहैं -सूरदास
- ऊधौ यहै अचंभौ बाढ़ -सूरदास
- ऊधौ यहै बिचार गहौ -सूरदास
- ऊधौ रथ बैठि चले -सूरदास
- ऊधौ राखियै यह बात -सूरदास
- ऊधौ लहनौ अपनौ पैयै -सूरदास
- ऊधौ लै चल लै चल -सूरदास
- ऊधौ वेद वचन प्रमान -सूरदास
- ऊधौ सुधि नाही या तन की -सूरदास
- ऊधौ सुनत तिहारे बोल -सूरदास
- ऊधौ सुनहु नैकु जो बात -सूरदास
- ऊधौ सुनौ बिथा तुम तात -सूरदास
- ऊधौ सूधै नैकु निहारौ -सूरदास
- ऊधौ स्याम इहाँ लै आवहु -सूरदास
- ऊधौ स्याम सखा तुम साँचे -सूरदास
- ऊधौ हम आजु भई बड़ भागी -सूरदास
- ऊधौ हम ऐसी नहीं जानी -सूरदास
- ऊधौ हम कत हरि तै न्यारी -सूरदास
- ऊधौ हम कह जानै जोग -सूरदास
- ऊधौ हम दूबरी वियोग -सूरदास
- ऊधौ हम दोउ कठिन परी -सूरदास
- ऊधौ हम ब्रजनाथ बिसारे -सूरदास
- ऊधौ हम लगी साँच के पाछे -सूरदास
- ऊधौ हम लायक सिख दीजै -सूरदास
- ऊधौ हम लायक हमसौं कहौ -सूरदास
- ऊधौ हम वह कैसे मानै -सूरदास
- ऊधौ हम हरि कत बिसराए -सूरदास
- ऊधौ हम है हरि की दासी -सूरदास
- ऊधौ हमरौ कछू दोष नहिं -सूरदास
- ऊधौ हमहि न जोग सिखैयै -सूरदास
- ऊधौ हमहिं कहा समुझावहु -सूरदास
- ऊधौ हरि कहियै प्रतिपालक -सूरदास
- ऊधौ हरि काहे के अंतरजामी -सूरदास
- ऊधौ हरि कुबिजा के मीत भए -सूरदास
- ऊधौ हरि के औरै ढंग -सूरदास
- ऊधौ हरि जू हित जमाइ -सूरदास
- ऊधौ हरि बिनु ब्रज रिपु -सूरदास
- ऊधौ हरि बेगहि देउ पठाइ -सूरदास
- ऊधौ हरि यह कहा बिचारी -सूरदास
- ऊधौ हरि रीझे धौ काहे -सूरदास
- ऊधौ हरि हीं पै ऐसी बनि आवत -सूरदास
- ऊधौ हरिगुन हम चकडोर -सूरदास
- ऊधौ है तू हरि के हित कौ -सूरदास
- ऊधौ होउ आगे तैं न्यारे -सूरदास
- ऊध्वर्ग
- ऊर्जयोनि
- ऊर्जस्कर
- ऊर्णनाभ
- ऊर्णायु
- ऊर्ध्वकेश (रुद्र)
- ऊर्ध्वग
- ऊर्ध्वभाक
- ऊर्ध्ववाहु
- ऊर्ध्ववेणीधरा
- ऊर्व
- ऊष्मप
- ऊष्मपायी
- ऊष्मा
- ऋक्ष
- ऋक्ष (अरिह पुत्र)
- ऋक्ष (बहुविकल्पी)
- ऋक्षदेव
- ऋक्षमालागत
- ऋक्षराज
- ऋक्षवान
- ऋक्षा
- ऋक्षाम्बिका
- ऋग्वेद
- ऋग्वेद
- ऋचीक
- ऋचीक (बहुविकल्पी)
- ऋचीक (भुमन्यु पुत्र)
- ऋचीक ऋषि
- ऋचीक मुनि का गाधिकन्या के साथ विवाह
- ऋचेय
- ऋचेयु
- ऋजु
- ऋजुदाय
- ऋणज्य
- ऋत
- ऋतधाम
- ऋतधामा
- ऋतु
- ऋतु बसंत के आगमहि -सूरदास
- ऋतु बसंत के आगमहि 2 -सूरदास
- ऋतु बसंत के आगमहि 3 -सूरदास
- ऋतुएँ
- ऋतुध्वज (रुद्र)
- ऋतुपर्ण
- ऋतुपर्ण का कुण्डिनपुर में प्रवेश
- ऋतुपर्ण का विदर्भ देश को प्रस्थान
- ऋतुपर्ण से नल को द्यूतविद्या के रहस्य की प्राप्ति
- ऋतुस्थला
- ऋतुस्थली