विषय सूची
श्रीप्रेम सुधा सागर
दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
अट्ठावनवाँ अध्याय
परीक्षित्! कोसलदेश के राजा थे नग्नजित्। वे अत्यन्त धार्मिक थे। उनकी परम सुन्दरी कन्या का नाम था सत्या; नग्नजित् की पुत्री होने से वह नाग्नजिती भी कहलाती थी। परीक्षित्! राजा की प्रजा के अनुसार सात दुर्दान्त बैलों पर विजय प्राप्त न कर सकने के कारण कोई राजा उस कन्या से विवाह न कर सके। क्योंकि उनके सींग बड़े तीखे थे और वे बैल किसी वीर पुरुष की गन्ध भी नहीं सह सकते थे । जब यदुवंशशिरोमणि भगवान श्रीकृष्ण ने यह समाचार सुना कि जो पुरुष उन बैलों को जीत लेगा, उसे ही सत्या प्राप्त होगी; तब वे बहुत बड़ी सेना लेकर कोसलपुरी (अयोध्या) पहुँचे । कोसलनरेश महाराज नग्नजनित् ने बड़ी प्रसन्नता से उनकी अगवानी की और आसन आदि देकर बहुत बड़ी पूजा-सामग्री से उनका सत्कार किया। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनका बहुत-बहुत अभिनन्दन किया । राजा नग्नजनित् की कन्या सत्या ने देखा कि मेरे चिर-अभिलषित रमारमण भगवान श्रीकृष्ण यहाँ पधारे हैं; तब उसने मन-ही-मन यह अभिलाषा की कि ‘यदि मैंने व्रत-नियम आदि का पालन करके इन्हीं का चिन्तन किया है तो ये ही मेरे पति हों और मेरी विशुद्ध लालसा को पूर्ण करें’ । नाग्नजिती सत्या मन-ही-मन सोचने लगी—‘भगवती लक्ष्मी, ब्रह्मा, शंकर और बड़े-बड़े लोकपाल जिनके पदपंकज का पराग अपने सिर पर धारण करते हैं और जिन प्रभु ने अपनी बनायी हुई मर्यादा का पालन करने के लिये ही समय-समय पर अनेकों लीलावतार ग्रहण किये हैं, वे प्रभु मेरे किस धर्म, व्रत अथवा नियम से प्रसन्न होंगे ? वे तो केवल अपनी कृपा से ही प्रसन्न हो सकते हैं’ । परीक्षित्! राजा नग्नजित् ने भगवान श्रीकृष्ण की विधिपूर्वक अर्चा-पूजा करके यह प्रार्थना की—‘जगत् के एकमात्र स्वामी नारायण! आप अपने स्वरूपभूत आनन्द ही परिपूर्ण हैं और मैं हूँ एक तुच्छ मनुष्य! मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?’ । |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
-
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज