गीता प्रबंध -श्री अरविन्द गीता प्रबंध -अरविन्द क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या भाग-1 1. गीता से हमारी आवश्यकता और मांग 1 2. भगवद्गुरु 9 3. मानव-शिष्य 17 4. उपदेश का सारमर्म 26 5. कुरुक्षेत्र 37 6. मनुष्य और जीवन-संग्राम 44 7. आर्य क्षत्रिय-धर्म 56 8. सांख्य और योग 68 9. सांख्य, योग और वेदांत 80-81 10. बुद्धियोग 92 11. कर्म और यज्ञ 102 12. यज्ञ-रहस्य 110 13. यज्ञ के अधीश्वर 119 14. दिव्य कर्म का सिद्धांत 128 15. अवतार की संभावना और हेतु 139 16. भगवान की अवतरण-प्रणाली 152 17. दिव्य जन्म और दिव्य कर्म 161 18. दिव्य कर्मी 169 19. समत्व 180 20. समत्व और ज्ञान 192 21. प्रकृति का नियतिवाद 203 22. त्रैगुणातीत्य 215 23. निर्वाण और संसार में कर्म 225 24. कर्मयोग का सारतत्त्व 238 भाग-2 खंड-1 1. दो प्रकृतियां 250 2. भक्ति-ज्ञान-समन्वय 262 3. परम ईश्वर 272 4. राजगुह्य 284 5. भवदीय सत्य और मार्ग 294 6. कर्म, भक्ति और ज्ञान 305 7. गीता का महावाक्य 320 8. भगवान की संभूति–शक्ति 337 9. विभूति का सिद्धांत 348 10. विश्वरूप-दर्शन 360 11. विश्वपुरुष–दर्शन 372 12. मार्ग और भक्त 380 खंड-2 13. क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ 391 14. त्रैगुणातीत 403 15. तीन पुरुष 417 16. आध्यात्मिक कर्म की परिपूर्णता 433 17. देव और असुर 449 18. त्रिगुण, श्रद्धा और कर्म 463 19. त्रिगुण,मन और कर्म 482 20. स्वभाव और स्वधर्म 497 21. परम रहस्य की ओर 518 22. परम रहस्य 533 23. गीता का सारमर्म 558 24. गीता का संदेश 570 25. अंतिम पृष्ठ 597 वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः