ऐसे गुन हरि के री माई।
मैं पहिचानि रही हौ नीके, कुटिल-सिरोमनि-राई।।
अब मोसौ उनसौ कहि बनिहै, कछु मै गई बुलावन।
आपुहिं काल्हि कृपा यह कीन्ही, अजिर गए करि पावन।।
तोकौ मिलै कहूँ मेरी सौ, तिनसौ यह तू कहियै।
'सूरदास' प्रभु बोल न साँचे, लाज कछू जिय गहियै।।2713।।