ऊधौ ! निठुर मो सम कौन ?
कोटि कुलिसहु तैं कठिन, तेहि छिन रह्यौ धरि मौन॥
लै चल्यौ बैठारि रथ मोहि क्रूर अति अक्रूर।
दौरि आर्ईं ब्रज-बधू सब, रहीं नैकहिं दूर।
धैर्य-मूरति राधिका, नहिं राखि पाई धीर॥
चली बिलपति करति क्रंदन, बहत दृग द्रुत नीर॥
गिरति, उठति, दहाड़ मारति, उच्च सुर बेहाल।
दौरि आवति अति उतावरि जुग-सदृस पल काल॥
उष्न अँसुअन ताप तें तरु-लता सब मुरझाय।
सूखि गइ पल माहिं, रोवत बिहग-कुल बिलखाय॥
वत्स-गो-बृष भए ब्याकुल, रहे करुन डकार।
भए जीवन-हीन-से सब, बहि चली दृग-धार॥
लगे रोवन नेह-पूरित बन्यचर तजि धीर।
नभ घटा-घन छई असमय, बढ्यौ जमुना-नीर॥