"प्रेम सुधा सागर पृ. 396" के अवतरणों में अंतर

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राजा नग्नजित् ने कहा—‘प्रभो! आप समस्त गुणों के धाम हैं, एकमात्र आश्रय हैं। आपके वक्षःस्थल पर भगवती लक्ष्मी नित्य-निरन्तर निवास करती हैं। आपसे बढ़कर कन्या के लिये अभीष्ट वर भला और कौन हो सकता है ? परन्तु यदुवंशशिरोमणे! हमने पहले ही इस विषय में एक प्रण कर लिया है। कन्या के लिये कौन-सा वर उपयुक्त है, उसका बल-पौरुष कैसा है—इत्यादि बातें जानने के लिये ही ऐसा किया गया है। वीरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! हमारे ये सातों बैल किसी के वश में न आने वाले और बिना सधाये हुए हैं। इन्होने बहुत-से राजकुमारों के अंगों को खण्डित करके उनका उत्साह तोड़ दिया है। श्रीकृष्ण! यदि इन्हें आप ही नाथ लें, अपने वश में कर लें, तो लक्ष्मीपते! आप ही हमारी कन्या के लिये अभीष्ट वर होंगे । भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नग्नजनित् का ऐसा प्रण सुनकर कमर में फेंट कस ली और अपने सात रूप बनाकर खेल-खेल में ही उन बैलों को नाथ लिया ।
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राजा नग्नजित् ने कहा—‘प्रभो! आप समस्त गुणों के धाम हैं, एकमात्र आश्रय हैं। आपके वक्षःस्थल पर भगवती लक्ष्मी नित्य-निरन्तर निवास करती हैं। आपसे बढ़कर कन्या के लिये अभीष्ट वर भला और कौन हो सकता है ? परन्तु यदुवंशशिरोमणे! हमने पहले ही इस विषय में एक प्रण कर लिया है। कन्या के लिये कौन-सा वर उपयुक्त है, उसका बल-पौरुष कैसा है—इत्यादि बातें जानने के लिये ही ऐसा किया गया है। वीरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! हमारे ये सातों बैल किसी के वश में न आने वाले और बिना सधाये हुए हैं। इन्होने बहुत-से राजकुमारों के अंगों को खण्डित करके उनका उत्साह तोड़ दिया है। श्रीकृष्ण! यदि इन्हें आप ही नाथ लें, अपने वश में कर लें, तो लक्ष्मीपते! आप ही हमारी कन्या के लिये अभीष्ट वर होंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नग्नजनित् का ऐसा प्रण सुनकर कमर में फेंट कस ली और अपने सात रूप बनाकर खेल-खेल में ही उन बैलों को नाथ लिया ।
  
इससे बैलों का घमंड चूर हो गया और उनका बल-पौरुष भी जाता रहा। अब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रस्सी से बाँधकर इस प्रकार खींचने लगे, जैसे खेलते समय नन्हा-सा बालक काठ के बैलों को घसीटता है। राजा नग्नजनित् को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी कन्या का दान कर दिया और सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण ने भी अपने अनुरूप पत्नी सत्या का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया । रानियों ने देख कि हमारी कन्या को उसके अत्यन्त प्यारे भगवान श्रीकृष्ण ही पति के रूप में प्राप्त हो गये हैं। उन्हें बड़ा आनन्द हुआ और चारों ओर बड़ा भारी उत्सव मनाया जाने लगा ।
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इससे बैलों का घमंड चूर हो गया और उनका बल-पौरुष भी जाता रहा। अब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रस्सी से बाँधकर इस प्रकार खींचने लगे, जैसे खेलते समय नन्हा-सा बालक काठ के बैलों को घसीटता है। राजा नग्नजनित् को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी कन्या का दान कर दिया और सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण ने भी अपने अनुरूप पत्नी सत्या का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। रानियों ने देख कि हमारी कन्या को उसके अत्यन्त प्यारे भगवान श्रीकृष्ण ही पति के रूप में प्राप्त हो गये हैं। उन्हें बड़ा आनन्द हुआ और चारों ओर बड़ा भारी उत्सव मनाया जाने लगा।
 
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02:58, 1 सितम्बर 2017 का अवतरण

श्रीप्रेम सुधा सागर

दशम स्कन्ध
(उत्तरार्ध)
अट्ठावनवाँ अध्याय

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राजा नग्नजित् ने कहा—‘प्रभो! आप समस्त गुणों के धाम हैं, एकमात्र आश्रय हैं। आपके वक्षःस्थल पर भगवती लक्ष्मी नित्य-निरन्तर निवास करती हैं। आपसे बढ़कर कन्या के लिये अभीष्ट वर भला और कौन हो सकता है ? परन्तु यदुवंशशिरोमणे! हमने पहले ही इस विषय में एक प्रण कर लिया है। कन्या के लिये कौन-सा वर उपयुक्त है, उसका बल-पौरुष कैसा है—इत्यादि बातें जानने के लिये ही ऐसा किया गया है। वीरश्रेष्ठ श्रीकृष्ण! हमारे ये सातों बैल किसी के वश में न आने वाले और बिना सधाये हुए हैं। इन्होने बहुत-से राजकुमारों के अंगों को खण्डित करके उनका उत्साह तोड़ दिया है। श्रीकृष्ण! यदि इन्हें आप ही नाथ लें, अपने वश में कर लें, तो लक्ष्मीपते! आप ही हमारी कन्या के लिये अभीष्ट वर होंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने राजा नग्नजनित् का ऐसा प्रण सुनकर कमर में फेंट कस ली और अपने सात रूप बनाकर खेल-खेल में ही उन बैलों को नाथ लिया ।

इससे बैलों का घमंड चूर हो गया और उनका बल-पौरुष भी जाता रहा। अब भगवान श्रीकृष्ण उन्हें रस्सी से बाँधकर इस प्रकार खींचने लगे, जैसे खेलते समय नन्हा-सा बालक काठ के बैलों को घसीटता है। राजा नग्नजनित् को बड़ा विस्मय हुआ। उन्होंने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी कन्या का दान कर दिया और सर्वशक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण श्रीकृष्ण ने भी अपने अनुरूप पत्नी सत्या का विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया। रानियों ने देख कि हमारी कन्या को उसके अत्यन्त प्यारे भगवान श्रीकृष्ण ही पति के रूप में प्राप्त हो गये हैं। उन्हें बड़ा आनन्द हुआ और चारों ओर बड़ा भारी उत्सव मनाया जाने लगा।

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