अष्टाविंश (28) अध्याय: सभा पर्व (दिग्विजय पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टाविंश अध्याय: भाग 4 का हिन्दी अनुवाद
कुन्तीनन्दन अर्जुन अपने यश को बढ़ाने वाले थे। उन्होंने आभूषण धारण कर रखा था। वे शूरवीर, रथयुक्त, सेवकों से सम्पन्न और शक्तिशाली थे। उनके अंगों में कवच और मस्तक पर सुन्दर किरीट शोभा दे रहा था। वे कमर कसकर युद्ध के लिये तैयार थे और सब प्रकार की आवश्यक सामग्री उनके साथ थी। वे सुकुमार, अत्यन्त धैर्यवान्, तेज के पुंज, परम उत्तम, इन्द्रतुल्य पराक्रमी, शत्रुहन्ता तथा शत्रुओं के गजराजों की गति को रोक देने वाले थे। उन्हें देखकर वहाँ की स्त्रियों ने यही अनुमान लगाया कि इस वीर पुरुष के रूप में साक्षात शक्तिधारी कार्तिकेय पधारे हैं। वे आपस में इस प्रकार बातें करने लगीं- ‘सखियो! ये जो पुरुषसिंह दिखायी दे रहे हैं, संग्राम में इनका पराक्रम अद्भुत है। इनके बाहुबल का आक्रमण होने पर शत्रुओं के समुदाय अपना अस्तित्व खो बैठते हैं।’ इस प्रकार की बातें करती हुई स्त्रियाँ बड़े प्रेम से अर्जुन की ओर देखकर उनके गुण गाती और उनके मस्तक पर फूलों की वर्षा करती थीं। वहाँ के सभी निवासी बड़ी प्रसन्नता के साथ कौतूहलवश उन्हें देखते और उनके निकट रत्नों तथा आभूषणों की वर्षा करते थे। उन सबको जीतकर तथा उनके ऊपर कर लगाकर वहाँ से मणि, सुवर्ण, मूँगे, रत्न तथा आभूषण ले अर्जुन श्रृंगवान पर्वत पर चले गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज