तृतीय (3) अध्याय: आदि पर्व (पौष्य पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 17-32 का हिन्दी अनुवाद
(गुरु की आज्ञा का किस प्रकार पालन करना चाहिये, इस विषय में आगे का प्रसंग कहा जाता है) इन्हीं दिनों आयोदधौम्य नाम से प्रसिद्ध एक महर्षि थे। उनके तीन शिष्य इुए- उपमन्यु, आरुणि पांचाल तथा वेद। आरुणि को खेत पर भेजा और कहा- ‘वत्स! जाओ, क्यारियों की टूटी हुई मेंड़ बाँध दो।' उपाध्याय के इस प्रकार आदेश देने पर पांचाल देशवासी आरुणि वहाँ जाकर उस धान की क्यारी की मेंड़ बाँधने लग गया। परन्तु बाँध न सका। मेंड़ बाँधने के प्रयत्न में ही परिश्रम करते-करते उसे एक उपाय सूझ गया और वह मन ही मन बोल उठा- ‘अच्छा ऐसा ही करूँ’। वह क्यारी की टूटी हुई मेंड़ की जगह स्वयं ही लेट गया। उसके लेट जाने पर वहाँ का बहता हुआ जल रुक गया। फिर कुछ काल के पश्चात उपाध्याय आयेदधौम्य ने अपने शिष्यों से पूछा- ‘पांचाल निवासी आरुणि कहाँ चला गया?' शिष्यों ने उत्तर दिया- ‘भगवान! आप ही ने तो उसे यह कहकर भेजा था कि ‘जाओ’ क्यारी की टूटी हुई मेड़ बाँध दो।’ शिष्यों के ऐसा कहने पर उपाध्याय ने उनसे कहा ‘तो चलो, हम सब लोग वहीं चलें, जहाँ आरूणि गया है।' वहाँ जाकर उपाध्याय ने उसे आने के लिये आवाज दी ‘पांचाल निवासी आरुणि! कहाँ हो वत्स! यहाँ आओ।' उपाध्याय का यह वचन सुनकर आरुणि पांचाल सहसा उस क्यारी की मेड़ से उठा और उपाध्याय के समीप आकर खड़ा हो गया। फिर उनसे विनयपूर्वक बोला ‘भगवान! मैं यहाँ हूँ। क्यारी की टूटी हुई मेड़ से निकलते हुए अनिवार्य जल को रोकने के लिये स्वयं ही यहाँ लेट गया था। इस समय आपकी आवाज सुनते ही सहसा उस मेड़ को विदीर्ण करके आपके पास आ खड़ा हुआ। मैं आपके चरणों में प्रणाम करता हूँ, आप आज्ञा दीजिये, मैं कौन सा कार्य करूँ?’ आरुणि के ऐसा करने पर उपाध्याय ने उत्तर दिया- ‘तुम क्यारी के मेड़ को विदीर्ण करके उठे हो, अतः इस उद्दलनकर्म के कारण उद्दालक नाम से ही प्रसिद्ध होओगे।’ ऐसा कहकर उपाध्याय ने आरुणि को अनुगृहीत किया। साथ ही यह भी कहा कि, तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है, इसलिये तुम कल्याण के भागी होओगे। सम्पूर्ण वेद और समस्त धर्मशास्त्र तुम्हारी बुद्धि में स्वयं प्रकाशित हो जायेंगे’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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