अष्टादश (18) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: अष्टादश अध्याय: श्लोक 21-39 का हिन्दी अनुवाद
यह सुनकर ब्रह्मा जी ने भगवान नारायण से यह बात कही- ‘सर्वव्यापी परमात्मन! इन्हें बल प्रदान कीजिये, यहाँ एकमात्र आप ही सबके आश्रय हैं।' श्री विष्णु बोले- जो लोग इस कार्य में लगे हुए हैं, उन सबको मैं बल दे रहा हूँ। सब लोग पूरी शक्ति लगाकर मन्दराचल को घुमावें और इस सागर को क्षुब्ध कर दें। उग्रश्रवा जी कहते हैं- शौनक जी! भगवान नारायण का वचन सुनकर देवताओं और दानवों का बल बढ़ गया। उन सबने मिलकर पुनः वेगपूर्वक महासागर का वह जल मथना आरम्भ किया और उस समस्त जलराशि को अत्यन्त क्षुब्ध कर डाला। फिर तो उस महासागर से अनन्त किरणों बाले सूर्य के समान तेजस्वी, शीतल प्रकाश से युक्त, श्वेत वर्ण एवं प्रसन्नात्मा चन्द्रमा प्रकट हुआ। तदनन्तर उस घृतस्वरूप जल से श्वेत वस्त्र धारिणी लक्ष्मी देवी का आविर्भाव हुआ। इसके बाद सुरा देवी और श्वेत अश्व प्रकट हुए। फिर अनन्त किरणों से समुज्ज्वल दिव्य कौस्तुभमणि का उस जल से प्रादुर्भाव हुआ, जो भगवान नारायण के वक्षस्थल पर सुशोभित हुई। ब्रह्मन! महामुने! वहाँ सम्पूर्ण कामनाओं का फल देने वाले पारिजात वृक्ष एवं सुरभि गौ की उत्पत्ति हुई। फिर लक्ष्मी, सुरा, चन्द्रमा तथा मन के समान वेगशाली उच्चैःश्रवा घोड़ा- ये सब सूर्य के मार्ग आकाश का आश्रय ले, जहाँ देवता रहते हैं, उस लोक में चले गये। इसके बाद दिव्य शरीरधारी धन्वन्तरि देव प्रकट हुए। वे अपने हाथ में श्वेत कलश लिये हुए थे, जिसमें अमृत भरा था। यह अत्यन्त अद्भुत दृश्य देखकर दानवों में अमृत के लिये कोलाहल मच गया। वे सब कहने लगे ‘यह मेरा है, यह मेरा है।' |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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