ब्रह्म वैवर्त पुराण
ब्रह्मखण्ड : अध्याय 26
तपोधन! ऐसा कहकर नाभि तक जल में प्रवेश करे और मन्त्रोच्चारणपूर्वक चार हाथ लम्बा-चौड़ा सुन्दर मण्डल बनाकर उसमें हाथ दे तीर्थों का आवाहान करे। जो-जो तीर्थ हैं, उन सबका वर्णन कर रहा हूँ।
‘हे गंगे! यमुने! गोदावरि! सरस्वति! नर्मदे! सिन्धु! और कावेरि! तुम सब लोग इस जल में निवास करो।’ [1] तदनन्तर नलिनी, नन्दिनी, सीता, मालिनी, महापथा, भगवान विष्णु के पादार्घ्य से प्रकट हुई त्रिपथगामिनी गंगा, पद्मावती, भोगवती, स्वर्णरेखा, कौशिकी, दक्षा, पृथ्वी, सुभगा, विश्वकाया, शिवामृता, विद्याधरी, सुप्रसन्ना, लोकप्रसाधिनी, क्षेमा (देवी), वैष्णवी, शान्ता, शान्तिदा, गोमती, सती, सावित्री, तुलसी, दुर्गा, महालक्ष्मी, सरस्वती, श्रीकृष्णप्राणाधिका राधिका, लोपामुद्रा, दिति, रति, अहल्या, अदिति, संज्ञा, स्वधा, स्वाहा, अरुन्धती, शतरूपा तथा देवहूति इत्यादि देवियों का शुद्ध बुद्धिवाला बुद्धिमान पुरुष स्मरण करे। इनके स्मरण से स्नान कर अथवा बिना स्नान किये ही मनुष्य परम पवित्र हो जाता है। इसके बाद विद्वान पुरुष दोनों भुजाओं के मूलभाग में, ललाट में, कण्ठदेश में और वक्षःस्थल में तिल लगाये। यदि ललाट में तिलक न हो तो स्नान, दान, तप, होम, देवयज्ञ तथा पितृयज्ञ– सब कुछ निष्फल हो जाता है। ब्राह्मण स्नान के पश्चात् तिलक करके संध्या और तर्पण करे। फिर भक्तिभाव से देवताओं को नमस्कार करके प्रसन्नतापूर्वक अपने घर को जाये। वहाँ यत्नपूर्वक पैर धोकर धुले हुए दो वस्त्र धारण करे। तत्पश्चात् बुद्धिमान पुरुष मन्दिर में जाये। यह साक्षात श्रीहरि का ही कथन है। जो स्नान करके पैर धोये बिना ही मन्दिर में घुस जाता है, उसका स्नान, जप और होम आदि सब नष्ट हो जाता है। जो गृहस्थ पुरुष पानी से भींगे या तेल से तर वस्त्र पहनकर घर में प्रवेश करता है, उसके ऊपर लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं और उसे अत्यन्त भयंकर शाप देकर उसके घर से निकल जाती हैं। यदि ब्राह्मण पिण्डलियों से ऊपर तक पैरों को धोता है तो वह जब तक गंगा जी का दर्शन न कर ले, तब तक चाण्डाल बना रहता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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